- संवाददाता, कानपुर
कानपुर : जंगली माता का मन्दिर दर्शन के समय बदल जाता है मूर्ति का स्वरूप

कानपुर कानपुर दक्षिण में स्थित जंगली देवी का अपना अलग ही महत्व हैं। जंगली माता के प्रति लाखों लोगों की श्रद्धा जुड़ी है। प्रतिदिन यहां देवी के दर्शन के लिए लोगों की भारी भीड़ आती है लेकिन नवरात्रों में तो यहां अपार जनसमूह एकत्र होता है। निर्माण के समय यह स्थान जंगल में होने के कारण इस मंदिर का नाम जंगली देवी पड़ा। किवदंती के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण राजा भोज ने 838 ईसवी में कराया था लेकिन लेकिन समय के साथ मन्दिर नष्ट हो गया। प्रचलित मान्यता के अनुसार 17 मार्च 1925 में गांव के एक व्यक्ति को खुदाई के समय एक मूर्तिनुमा ताम्रपत्र मिला जिसकी जानकारी उसने पुरातत्व विभाग को दी। इसके अलावा एक मान्यता औऱ भी है कि इसी गांव के रहने वाले एख व्यक्ति को मां ने सपने में आकर ताम्र पत्र और मूर्ति को तालाब किनारे नीम के पेड़ के नीचे स्थापित करने को कहा जिसपर उस व्यक्ति ने गांव वालों के सहयोग से तालाब के किनारे एक छोटे मन्दिर में मूर्ति की स्थापना कर दी। उस समय यहा घना जंगल हुआ करते था और इसीलिए इस मन्दिर का नाम जंृगली देवी पड़ गया। इस मन्दिर की विशेषता है कि यहां भक्तों की विशेष आस्था है और 1980 से यहां निरन्तर अखण्ड ज्योति जल रही है औऱ माना जाता है कि जो भी यहां घी दान करता है उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। कहा तो यह भी जाता है कि जो भक्त देवी प्रतिमा के सामने पूरे मन से प्रार्थना करता है तो धीरे-धीरे मूर्ति का रंग गुलाबी हो जाता है। नवरात्रि के छठवें दिन मन्दिर में खजाना बांटा जाता है जिसमें तांबे के सिक्के प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं।