- संवाददाता
शासनादेश रद्दी की टोकरी में,प्राधिकरणों में आवासीय आतंकवाद

गाजियाबाद : ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी व गाजियाबाद के मिसलगढ़ी में अवैध बिल्डिंग के गिरने से दोनेां जगह 10 लोगों की मौत हो गई। इसके साथ ही किसी की रकम डूबकर सपनों का आशियाना खो गया, किसी की मांग सूनी हुई, तो कोई अनाथ हो गया। इससे प्रशासन की भी आंखे खुल गईं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कड़ा रूख देखते हुए कार्रवाई का चाबुक चलाया गया है, लेकिन बात सिर्फ इतनी भी नहीं है। एनसीआर समेत मेरठ जोन के सभी जिलों में अवैध निर्माणों की भरमार है। नए-पुराने अवैध निर्माणों के लिए प्राधिकरणों को भले ही पहला जिम्मेदार माना जाता हो, लेकिन अवैध निर्माण कई विभागों की मोटी कमाई का जरिया होते हैं। यह बात अलग है कि वह कार्रवाई की जद में सीधे नहीं आते। व्यवस्था कुछ ऐसी है कि अवैध निर्माण पर बिना प्राधिकरण की जानकारी के रजिस्ट्री, बैंक लोन व बिजली-पानी के कनेक्शन तक हो जाते हैं। वैध-अवैध का खेल जितना चलता है उनका उतना ही फायदा होता है। माना जाता है कि प्राधिकरणों के अधिकारी भी अपनी कमियों पर पर्दा डालने की गरज से कभी खुलकर इस हकीकत को सामने नहीं रखते। मामले सामने आने पर गाज सिर्फ जेई स्तर तक गिरती है जबकि दायित्व अधिकारियों का भी होता है। वास्तव में ठोस कार्ययोजना से अवैध निर्माणों पर पूरी तरह से अंकुश लग सकता है, लेकिन वर्तमान में अवैध निर्माणों पर अंकुश लगाने की कार्ययोजना में मुनाफे का चक्रव्यूह फर्ज से मुठभेड़ करा देता है। अवैध निर्माण का फॉर्मूला सभी जगह लगभग एक जैसा ही होता। बिना मानचित्र के निर्माण करना, मानचित्र पास कराकर उसके अनुरूप निर्माण न करना, सैटबैक न छोड़ना, पार्किंग का गायब करना, बिना स्वीकृति के बेसमेंट बना लेना, मानको के अनुरूप बेसमेंट न बनाना, किसी एक प्लाट का मानचित्र स्वीकृत कराकर उसमें दूसरे को मिला लेना तथा एक मंजिल के मानचित्र पर अन्य मंजिल भी बना लेना आदि अवैध निर्माण की श्रेणी में आते हैं। नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बुलंदशहर व हापुड़ आदि जिलों में अवैध निर्माण का खेल बहुत बड़ी बीमारी बन चुका है। आबादी से लेकर खेतों तक में इमारतें बना दी जाती हैं। ज्यादातर को नियमों कसौटी पर उतारना भी नामुमकिन होता है।
प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन में अवैध निर्माणों की रोकथाम के लिए शासनादेश जारी किया था कि प्राधिकरणों में परवर्तन में काम करने वाले अवर अभियंता का क्षेत्र 3 माह बाद बदल दिया जाएगा 1 साल से ज्यादा अवर अभियंता प्रवर्तन विभाग में नहीं रखा जाएगा सहायक अभियंता की समय सीमा गाइडलाइन 1 साल तक रहेगी सवाल यह है कि क्या गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और कार्यवाहक उपाध्यक्ष डीएम गाजियाबाद रितु माहेश्वरी ने इस शासन आदेश का पालन कराया था ? अगर पालन किया होता तो अवैध निर्माण की जानकारी हासिल हो जाती और तत्काल दूसरा अवर अभियंता लगा दिया जाता तब ऐसी दुर्घटना नहीं होती सूत्रों की माने तो किसी भी विकास प्राधिकरण में इस गाइडलाइन का पालन नहीं किया जा रहा है और शासनादेश को रद्दी की टोकरी में फेंका जा रहा है जिससे योगी सरकार की बदनामी हो रही है कानपुर विकास प्राधिकरण और गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण उधर के चेहरों पर चल रहे है कानपुर में केस्को एमडी सौम्य अगरवाल देख रही है गाज़ियाबाद में डीएम ऋतू महेश्वरी देख रही है सवाल है क्या IAS अधिकारियो का तोटा लग गया ? कानपुर विकास प्राधिकरण सहायक अभियंता राजीव गौतम सीबीआई की गिरफ्त में है उनकी जगह जोने 1 और जोन 3 में अवैध निर्माण देखने वाला कोई नहीं है
ऐसे धड़ल्ले से होता है अवैध निर्माण का खेल अवैध निर्माणों को रोकने की जिम्मेदारी प्राधिकरणों की होती है। यह काम प्रवर्तन अनुभाग देखता है। इसमें कहीं मिलीभगत काम करती है, तो कहीं सिफारिशों का दबाव। सिफारिश के मामलों में सफेदपोश भी पीछे नहीं रहते। बडे़-छोटे अवैध निर्माण धड़ल्ले से होते हैं। कई निर्माण पर पार्टियों के झंडे तक लगा दिए जाते हैं। निर्माणकर्ताओं के हौंसले इतने बुलंद होते हैं कि सील तोड़कर भी निर्माण हो जाते हैं। अवर अभियंताओं पर धमकियों से लेकर दबाव का सिलसिला भी चलता है। जेई अपने विभाग में यदि अवैध निर्माण की सूचना देता है, तो उसके बाद निर्माणकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की कार्ययोजना बनाने का काम अधिकारियों का होता है। निर्माणकर्ता शातिर होते हैं वह प्रॉपर्टी बेचकर निकल जाते हैं। बाद में अवैध निर्माण पर कार्रवाई की मार खरीदारों को झेलनी पड़ती है। खरीदारों के लिए यह तय करना कठिन होता है कि कौन सा निर्माण वैध है और कौन सा अवैध। अवैध कालोनियां तक बस जाती हैं। अवैध निर्माण की सूचना स्थानीय थाने को भी लिखित में दी जाती है, लेकिन पता चलने पर मिलीभगत का कलयुगी फॉर्मूला चल जाता है। अवैध निर्माण के खिलाफ सख्ती हो, तो नौबत मारपीट तक आ जाती है। ऐसे कई मामले हैं। ताजा मामला गाजियाबाद का है। बीते दिनों अवैध निर्माण पर गए एक जेई के साथ मारपीट कर दी गई। ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि यह काम पुलिस की मौजूदगी के बावजूद हुआ। अवैध निर्माण अपनी जगह खड़ा है। अवैध निर्माण में शमन का रास्ता, वसूली का दबाव अवैध निर्माणों के मामले में शमन भी एक रास्ता है। दरअसल सभी प्राधिकरण अवैध निर्माण करने वालों को शमन की भी छूट देते हैं। इसके लिए मानचित्र के अनुरूप निर्माण न होने पर मापतौल करके शमन के रूप में शुल्क वसूला जाता है जो प्राधिकरणों के खाते में जाता है। कई निर्माणकर्ता इस उम्मीद में निर्माण करते हैं कि शमन करा लेंगे, लेकिन ऐसे भी मामले होते हैं जो शमन करने योग्य नहीं होते। कायदे से उन्हें तोड़ा जाना चाहिए, लेकिन पारदर्शिता के अभाव में ऐसा नहीं होता। तीसरा प्राधिकरण के अवर अभियंताओं पर दबाव होता है कि वह शमन के रूप में ज्यादा से ज्यादा राजस्व जमा करायें। इसके लिए टॉरगेट होते हैं। टॉरगेट पूरा न होने पर कार्रवाई की तलवार लटकती है। यानि शमन तभी होगा जब निर्माण गलत होगा। इस बहाने गलत की मूक छूट दे दी जाती है। कई विभागों से निकलता है जिम्मेदारी का रास्ता वास्तविकता यह है कि अवैध निर्माणों पर पूर्णतः अंकुश लगे और समाज में यह बीमारी न बढ़े इसकी ठोस कार्ययोजना नहीं है। दरअसल बिल्डिंग वैध है या अवैध बिना इसकी जांच पड़ताल किए न सिर्फ बैंक लोन कर देते हैं, बल्कि बिजली-पानी के कनेक्शन तक हो जाते हैं। रजिस्ट्री भी होती हैं। यदि 300 गज के प्लाट पर एक मकान बनता है, तो उस स्थिति में बिजली विभाग को अधिकतम 5 किलो वाट के कनेक्शन का राजस्व प्राप्त होगा जबकि 12 से 14 फ्लैट बन जाने के कारण बिजली विभाग की कई गुना कमाई हो जाती है। उसको कम से कम 40 से 50 किलो वाट का राजस्व मिलेगा। नगर निगम को भी हाउस टैक्स मिलता है। रजिस्ट्री विभाग को भी राजस्व मिलता है। अवैध निर्माण की जानकारी थाना पुलिस को भी होती है, क्योंकि प्राधिकरण कर्मी ही थाने में लिखकर देते हैं कि अवैध निर्माण को रूकवाया जाए। बावजूद इसके निर्माण हो जाता है। अब कार्रवाई की बात आती है, तो सबसे पहली गाज जेई पर गिरती है जबकि अधिकारी व अन्य विभाग जिम्मेदार नहीं होते। बिना प्राधिकरणों की एनओसी लिए यदि बैंक लोन न करे, रजिस्ट्री न हो, बिजली-पानी का कनेक्शन न मिले, तो शायद ही अवैध निर्माण हों। इस संबंध में विज्ञापन आदि देकर लोगों को जागरूक करने की भी कोई योजना नहीं है। चौंकाने वाली बात यह है कि अवैध निर्मित इमारतों में बैंक तक संचालित होते हैं।