- दिनेश जांगू विश्नोई
मै ढलता दिन

अकसर कुछ कह रहा होता हूँ !!!!!!
कि हर पल एक सा रहता नही।
हर सफ़र,हमसफर बन चलता नही।
धीरे-धीरे हर तत्व अपनी चमक खो देता है
पर दोस्त,धीरे धीरे हर शब्द असर दे देता है।
मैं जानता हूँ , मिलूँगा चाँदनी से
मगर अँधेरा मुझे घेर लेगा
चाँदनी की चाहत में
मेरे तेवर फीके पड़ जाते है
मैं उदास हो जाता हूँ
जब धीरे-धीरे मेरा काल खत्म हो रहा होता है
मैं सदा आलोकित रखना चाहता हूँ जग को
मगर,
कुछ मजबूरियाँ मुझे टिकने ही नही देती
फिर धीरे-धीरे अन्धेरे के आगोश में खो जाता हूँ
रहती है मुझे फिर से लौटने की चाहत
क्योंकि कोई मेरा इंतज़ार निर्निमेष कर रहा होता है
बस , आता-जाता रहता हूँ
यही मेरा चक्र है,
मैं तो बस दिन हूँ
मेरा तो काम उजियारा करना।
दिन......
दिनेश जांगू, विश्नोई( जोधपुर)